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Thursday, August 19, 2021

मूवी रिव्‍यू: जानिए, कैसी है अक्षय कुमार की फिल्‍म 'बेल बॉटम'

कोरोना काल के कहर के बाद किसी भव्य और बड़ी स्टारकास्ट वाली फिल्म का थिएटर में आना बॉलिवुड ही नहीं फिल्म प्रेमियों के लिए भी खुशी का सबब है और ये पहल हुई है, निर्देशक रंजीत एम तिवारी (Ranjit M Tewari) और निर्माता वाशु भगनानी, जैकी भगनानी, दीपशिखा देशमुख की पूजा एंटरटेनमेंट और निखिल अडवानी की एमी एंटरटेनमेंट की फिल्म 'बेल बॉटम' (Bell Bottom) से। वाकई तारीफ करनी होगी कि कोविड के मुश्किल समय में जब कई जाने-माने फिल्मकारों ने अपनी बड़ी फिल्मों को दर्शकों तक पहुंचाने के लिए ओटीटी की आसान राह अपनाई, ऐसे में निर्माता इसे थिएटर में लाने का साहस किया, वो भी तब जब महाराष्ट्र जैसे बड़े सेंटर में सिनेमाहॉल खुले नहीं हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि निर्माता-निर्देशक ने सिनेमा हॉल्स की रौनक लौटाने का भार () के कंधों पर डाला है और अक्षय ने यह जिम्मेदारी बखूबी निभाई है। कोरोना काल में शूट हुई देशभक्ति वाली इस फिल्म को आजादी की 75 वीं सालगिरह पर 3D फॉर्मेट में रिलीज करना यकीनन एक अरसे से थिएटर जाने को लालायित दर्शकों के लिए मनोरंजक पैकेज साबित होगा। कहानी सच्ची घटनाओं से प्रेरित इस फिल्म की कहानी एक रॉ ऐजेंट की है, जिसे हम एक ऐसा अनसंग हीरो भी कह सकते हैं, जिसकी जांबाजी, सूझ-बूझ और साहस हाइजेक हुए एक प्लेन के न केवल पैसेंजर बचा लिए जाते हैं बल्कि उस प्लेन को अगवा करने वाले आतंकवादियों को भी पकड़ लिया जाता है। फिल्म की पृष्ठ्भूमि अस्सी के दशक की है, जब देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (इस भूमिका को लारा नई निभाया है) हुआ करती थीं। यह वो दौर था, जब देश एक के बाद एक करके लगातार कई हाइजेक्स का शिकार हो चुका था। एयर प्लेन के इन हाइजेक्स में देश को निगोशिएशन के दौरान आतंकियों को यात्रियों की जान के एवज में करोड़ों रुपये की मोटी रकम तो देनी पड़ती है, मगर साथ ही हर बार भारतीय जेल में बंद खूंखार आतंकवादियों को भी रिहा करना पड़ता है। ऐसे ही एक हाइजेक में जब मल्टीटास्किंग अंशुल मल्होत्रा (अक्षय कुमार) अपनी मां (डॉली अहलूवालिया) को खो देता है, तो उसका वही दर्द उसे रॉ ऐजेंट बनने को प्रेरित करता है। हालांकि राधिका () से लव मैरिज करके खुशहाल जिंदगी बचाने वाले अंशुल ने कभी नहीं सोचा था कि वह रॉ में 'बेल बॉटम' के कोड नेम से देश की सुरक्षा का बीड़ा उठाएगा और इन हाइजेक्स में पाकिस्तान के इंटेलिजेंस ब्यूरो आइएएस की भूमिका का पर्दाफाश करेगा। 'लखनऊ सेंट्रल' फेम निर्देशक रंजीत एम तिवारी को अक्षय कुमार की तमाम खूबियों का अंदाजा था और उन्होंने उसे अपनी कहानी में खूबसूरती से पिरोया। फिल्म का फर्स्ट हाफ कहानी और किरदारों को डेवलप करने के चक्कर में थोड़ा स्लो लगता है, मगर सेकंड हाफ में कहानी का थ्रिलर आस्पेक्ट फिल्म को मजबूत बनाता है। फिल्म के दूसरे भाग में कई टर्न और ट्विस्ट हैं, जो दर्शकों को बांधे रखते हैं। अस्सी के दशक को निर्देशक पर्दे पर साकार करने में कामयाब रहे हैं। असीम अरोरा और परवेज शेख के चुटीले डायलॉग फ्रंट बेंचर्स को सीटी और तालियां मारने पर विवश कर देते हैं। फिल्म की एडिटिंग इंटरवल के बाद अपनी कसावट दर्शाती है। बैकग्रॉउंड स्कोर और कास्टिंग फिल्म प्लस पॉइंट है। फिल्म में तनिष्क बागची, अमान मलिक और गुरमाजर सिंह का संगीत है, मगर 'सखियां' गाने के अलावा और कोई गाना याद नहीं रहता। इस तरह की एक्शन-थ्रिलर में संगीत पक्ष मजबूत होता, तो बात सोने पर सुहागा वाली साबित हो जाती। अक्षय कुमार एक बार फिर अपने हीरोइक अंदाज में नजर आते हैं। एक लंबे अरसे से वे इस तरह की देशभक्ति वाले किरदार में नजर आते रहे हैं। वे इस तरह की देशभक्ति वाली फिल्मों के पोस्टर बॉय बन चुके हैं। इन किरदारों में उनकी सहजता देखते बनती है, मगर इस बार उन्होंने अंशुल मल्होत्रा उर्फ़ 'बेल बॉटम' के चरित्र को अपनी विशिष्ट शैली से अलग अंदाज में परोसा है। पर्दे पर उन्हें रॉ एजेंट के रूप में देखना थ्रिल देता है। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की भूमिका में लारा दत्ता () फिल्म का सरप्राइज पैकेज साबित हुई हैं। उनके प्रॉस्थेटिक मेकअप के साथ उनकी भाव-भंगिमाएं किरदार को यादगार बना ले जाती हैं। नायिका के रूप में वाणी कपूर () अपनी मौजूदगी दर्ज कर ले जाती हैं और साथ ही उनके चरित्र से जुड़ा ट्विस्ट क्लाइमेक्स में चौंका। हुमा कुरैशी (Huma Qureshi) को पर्दे पर ज्यादा स्क्रीन स्पेस नहीं मिला, मगर इसके बावजूद वे छाप छोड़ जाती हैं। अभिनेता आदिल (Adil Hussain) ने हमेशा की तरह अपने अभिनय से फिल्म को समृद्ध किया है। कुछ भीगे अल्फाज फेम ऐक्टर जैन खान (Zain Khan) दुर्रानी ने आतंकी की भूमिका के साथ न्याय किया है। सहयोगी कास्ट कहानी को बल देती है। क्यों देखें- कोरोना काल की लंबी उदासी के बाद अक्षय समेत सभी कलाकारों की परफॉर्मेंस और देशभक्ति के रस में डूबी इस फिल्म को देखना बनता है।


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