(ग्राउंड रिपाेर्ट -1-कोविड-19 अस्पतालों से-नीता सिसौदिया)24 साल के युवक को बुखार के कारण चरक अस्पताल में भर्ती किया। तीन दिन इलाज चला। डॉक्टर ने एक्स-रे और सोनोग्राफी के लिए कहा। रिपोर्ट्स नॉर्मल आई। उसे सर्दी-खांसी नहीं थी। डॉक्टर्स ने इस पर ग्रीन जोन वाले अपोलो अस्पताल भेज दिया। वहां से डॉक्टरों ने सिनर्जी भेजा, जो यलो जोन में है। मरीज की अब तक न जांच हुई है, न इलाज शुरू हो रहा है। डॉक्टर्स भी गफलत में हैं कि इसे किस तरह का मरीज मानें। दो श्रेणी के तीन अस्पताल घूमने के बाद युवक और परिवार बुरी तरह परेशान हो गया। ऐसी स्थिति एक-दो नहीं, सैकड़ों लोगों की हो रही है, जो ग्रीन, यलो और रेड के चक्कर में फंस गए हैं। दरअसल, 24 मार्च को 5 कोरोना पॉजिटिव मिलने के बाद शहर का मेडिकल सिस्टम बुरी तरह प्रभावित हुआ है। निजी क्लिनिक प्रशासन ने बंद करवा दिए हैं तो कुछ अस्पतालों ने डर के मारे मरीजों को लेना ही बंद कर दिया है। कुछ अस्पतालों में तो डॉक्टर, नर्स और अन्य पैरामेडिकल स्टाफ ड्यूटी पर ही नहीं आ रहा। इसके बाद बड़े निजी अस्पतालों को रेड, यलो और ग्रीन जोन में बांटा, पर ये बंटवारा मरीजों की फजीहत करवा रहा है। मरीज जानता नहीं, वह अस्पताल पहुंचता है, पर्ची कटवा लेता है, जेब से शुरुआत में दो-तीन हजार खर्च हो जाते हैं, उसके बाद अस्पताल बताता है कि उसकी बीमारी अस्पताल की श्रेणी से मेल नहीं खाती।
6 बड़ी लापरवाही, जिनसे बिगड़े हालात : जहां आइसोलेशन वार्ड, वहां सोशल डिस्टेंसिंग ही नहीं
1. एयरपोर्ट पर स्क्रीनिंग से पहले ही वायरस आया
कोरोना के खतरे की आहट 31 जनवरी को पहली बार सुनाई दी, जब चीन से लौटे 21 वर्षीय छात्र और 22 वर्षीय छात्रा को संदेह में अस्पताल में भर्ती कराया। हालांकि दोनों की रिपोर्ट निगेटिव आई। अफसर समझे कि हमारे यहां वायरस नहीं पहुंचा, पर ऐसा नहीं था, कोरोना का संक्रमण स्थानीय स्तर पर पहले ही आ चुका था।
2. पीपीई किट, ग्लव्स, मास्क भी पर्याप्त नहीं थे
कोरोना संक्रमण का पहला मामला आया, तब किसी को अंदाज नहीं था कि इंदौर में इतनी संख्या में केस सामने आएंगे। हेल्थ सिस्टम इसके लिए तैयार नहीं था, अस्पतालों में पीपीई किट, ग्लव्स और मास्क तक पर्याप्त नहीं थे। बीमारी के लिए स्टाफ की ट्रेनिंग या काउंसलिंग तक हमारे यहां नहीं की।
3. देर से ओपीडी शुरू की, सोशल डिस्टेंसिंग नहीं
एमआर टीबी अस्पताल में 5 मार्च को फ्लू ओपीडी शुरू हुई थी। यहीं पर आइसोलेशन वार्ड भी बना दिया, जिसमें कोई सुविधा नहीं थी। सर्दी-जुकाम के मरीज जांच में आए, उन्हें कतार में लगा दिया। सोशल डिस्टेंस्टिंग अस्पताल में ही नहीं मानी। किसी ने मास्क का उपयोग नहीं किया, जबकि यहां टीबी के मरीज भी आ रहे थे।
4. मरीज बढ़े तब एमवाय में फ्लू ओपीडी शुरू की
जब मरीजों की संख्या बढ़ी तब ताबड़तोड़ पिछले हफ्ते एमवाय अस्पताल की नियमित ओपीडी बंद कर फ्लू ओपीडी शुरू की। एमआर टीबी, अरबिंदो, गोकुलदास, विशेष अस्पताल को कोविड-19 अस्पताल बनाया, पर तब तक 10 से ज्यादा अस्पतालों में मरीज पहुंच चुके थे। इससे शहर में संक्रमित मरीज, संदेही फैल गए।
5. संदिग्ध और पॉजिटिव मरीज साथ-साथ हुए
मार्च के पहले हफ्ते में एमआर टीबी को खाली कराया और एमवायएच में आइसोलेशन वार्ड बनाया। यहां हड्डी के मरीज भी भर्ती होते हैं। जब पहली बार संक्रमित सामने आए तब बिल्डिंग खाली करवाई। इससे स्टाफ संक्रमित हुआ और नर्सों को आइसोलेट करना पड़ा। संदिग्ध-पॉजिटिव मरीज साथ हो गए। दूसरे अस्पताल इन्हें लेने को तैयार नहीं थे।
6. एक की रिपोर्ट रात को, दूसरे की मिलती अगले दिन
मरीजों की जांच रिपोर्ट एमजीएम मेडिकल कॉलेज प्रशासन के पास पहुंचती है और रात को ही ये आंकड़े जारी कर देता है, लेकिन स्वास्थ्य विभाग को सूची अगले दिन मिलती है, जिसके पास इन मरीजों को कोविड अस्पताल भेजने की जिम्मेदारी है। इससे मैरिज गार्डन, होटल या अन्य जगह क्वारेंटाइन मरीजों को अगले दिन शिफ्ट कर रहे।
प्रोटेक्शन के लिए हर दिन 300 पीपीई किट की जरूरत है
एमवाय अस्पताल में ही हर दिन 300 पर्सनल प्रोटेक्शन किट (पीपीई) की जरूरत है, पर ये उपलब्ध नहीं हो पा रही हैं। इधर, अस्पताल में इसको लेकर आए दिन हंगामा भी हो रहा है। नर्सिंग स्टाफ इसके बिना काम करने से इनकार कर रहा। कॉलेज के स्तर पर भी शिकायतें हो चुकी हैं। पहले इतने केस का अनुमान नहीं था, अब निजी कंपनियों की मदद से पीपीई किट की आपूर्ति की कोशिश चल रही है। इसी तरह नर्सिंग स्टाफ की ट्रेनिंग भी अप्रैल महीने में शुरू हो रही है।
नागपुर, पुणे भेजते रहे सैंपल, शुरू में यहां सिर्फ 21 जांचें
यलो, ग्रीन और रेड श्रेणी बनाने के साथ लैब से जांच करवाने में भी प्रशासन गफलत में रहा। 22 मार्च तक सारे सैंपल पुणे और नागपुर की लैब में भेजे, जहां से 3 से 4 दिन में रिपोर्ट मिल रही थी। उसके बाद वायरोलॉजी लैब शुरू की, पर शुरुआती 7 दिन वहां 21 सैंपल की ही जांच हुई, जबकि इनकी संख्या 40 से 50 के बीच थी। इससे कम्युनिटी संक्रमण तेजी से फैला और हर इलाके की स्क्रीनिंग नहीं की जा सकी।
घायल को तीन अस्पतालों ने लौटा दिया, एमवायएच पहुंचते ही मौत
लोकमान्य नगर में रहने वाले 86 वर्षीय रिटायर्ड इंजीनियर नारायण फाटक सोमवार को घर में सीढ़ियां चढ़ते वक्त फिसल गए। उन्हें सिर में गंभीर चोट लगी। बेटा तुषार उन्हें तुरंत यूनिक अस्पताल ले गया, पर डॉक्टर नहीं है... कहकर स्टाफ ने इलाज करने से मना कर दिया। इसके बाद अरिहंत अस्पताल पहुंचे। वहां भी यही जवाब देकर बाहर से ही मना कर दिया गया। दो अस्पतालों के मना करने के बाद रिश्तेदारों ने चोइथराम अस्पताल ले जाने को कहा। वहां भी वही रटारटाया जवाब मिला। तीन अस्पतालों की भाग-दौड़ में डेढ़ घंटे से ज्यादा बर्बाद हो गया। फिर घायल को लेकर एमवायएच पहुंचे। वहां पहुंचते ही नारायण ने दम तोड़ दिया। तुषार ने व्यवस्था पर आक्रोश जताते हुए कहा- कोरोना संक्रमण महामारी जरूर है, लेकिन किसी की इमरजेंसी को भी समझना चाहिए। यदि पिता को समय पर इलाज मिल जाता तो शायद वे बच जाते।
निजी अस्पताल ने गेट से ही मरीज को गोकुलदास भेजा, वहां डॉक्टर नहीं मिले
खजराना के हाईपोग्लाइसिमिया पीड़ित एक मरीज को रविवार रात काे निजी अस्पताल ने बाहर से ही रवाना कर दिया। डॉक्टर ने हाथ तक नहीं लगाया और सीधे गोकुलदास अस्पताल जाने की सलाह दे दी। परिजन गोकुलदास अस्पताल पहुंचे तो वहां कोई डॉक्टर ही नहीं था। घंटों एम्बुलेंस में रहने के बाद स्वास्थ्य विभाग की टीम को फोन लगाया गया। तब डॉ. आदित्य चौरसिया रात को ही अस्पताल पहुंचे। वहां डॉक्टर के बारे में पूछा तो बताया कि कोई नहीं है। डॉ. चौरसिया ने तल्खी दिखाई तब एक आयुष डॉक्टर बाहर आया और मरीज को भर्ती किया गया। बताया जाता है मरीज सर्दी-खांसी भी थी। इसी तरह की परेशानी का सामना मरीजों को यलो जोन के अस्पतालों में करना पड़ रहा है।
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