बॉलिवुड के 'ट्रैजिडी किंग' के नाम से मशहूर रहे ऐक्टर दिलीप कुमार (Dilip Kumar) अब इस दुनिया में नहीं हैं। 7 जुलाई की सुबह उन्होंने आखिरी सांस ली। दिलीप कुमार इस मामले में तो खुशकिस्मत थे कि उन्हें सायरा बानो () जैसी हमसफर मिली, जिसने हर पल, हर दम साथ दिया, लेकिन उनके दिल में हमेशा ही एक बात की टीस रही और जो आखिरी दम तक साथ ही रह गई। दिलीप कुमार के मन में टीस थी कि वह कभी पिता () नहीं बन पाए। लेकिन बहुत ही कम लोगों को पता होगा कि इसकी वजह क्या थी। दिलीप कुमार ने इसका जिक्र अपनी ऑटोबायॉग्रफी 'The Substance And The Shadow' में किया था। पढ़ें: 1972 में प्रेगनेंट हुई थीं सायरा बानो, नहीं बचा बच्चा दिलीप कुमार ने बताया था कि सायरा बानो पहली बार 1972 में प्रेगनेंट (Saira Banu pregnancy) हुई थीं। लेकिन 8 महीने की प्रेग्नेंसी होने पर सायरा को ब्लड प्रेशर की परेशानी हुई और उन्होंने बच्चा खो दिया। इस बारे में दिलीप कुमार ने अपनी किताब में लिखा, '8 महीने के प्रेग्नेंसी होने पर हमने अपने बच्चे को खो दिया। सायरा का हाई ब्लड प्रेशर की शिकायत हो गई थी और डॉक्टर भ्रूण को बचाने के लिए वक्त पर सर्जरी नहीं कर पाई। और फिर दम घुटने से बच्चे की मौत हो गई।' दूसरी शादी की अफवाह उड़ने पर सामने आई थी सायरा की प्रेग्नेंसी की बात इसके कुछ साल बाद 1982 में खबर फैली कि दिलीप कुमार (Dilip Kumar second marriage) ने आसमा रहमान (Asma Rehman) नाम की एक महिला से शादी कर ली है। दिलीप कुमार खुद भी इस खबर से हैरान रह गए थे। सायरा बानो को जब इस खबर का पता लगा तो वह टूट गई थीं। कहा जा रहा था कि बच्चे की चाह में दिलीप कुमार ने दूसरी शादी की है। ऐसी खबरों से दिलीप कुमार बुरी तरह हिल गए। तब उन्होंने सायरा बानों की प्रेग्नेंसी और मिसकैरेज के बारे में सबको बताया था, जिसका जिक्र उन्होंने अपनी ऑटोबायॉग्रफी में किया। पढ़ें: दिलीप कुमार किसी तरह से दूसरी शादी के उस विवाद से बाहर निकले और एक बार फिर सायरा बानो के साथ हंसी-खुशी रहने लगे। पर मन में वह इच्छा दबी ही रह गई कि 'काश अपने भी बच्चे होते।' 'अच्छा होता अगर हमारे अपने बच्चे होते' इस बारे में दिलीप कुमार ने किताब में लिखा था, 'एक सवाल जो कभी मन से जाता ही नहीं है कि क्या बच्चे न होने पर मैं खुश नहीं हूं? पर अच्छा होता अगर हमारे अपने बच्चे होते। लेकिन यह हमारे लिए कोई कमी की बात नहीं है। अल्लाह ने हमें हमारे परिवार में बहुत बच्चे दिए हैं। हमारे जवानी के सारे दिन मेरी बहनों और भाइयों के बच्चों के साथ बीते, जो स्कूल-कॉलेज की छुट्टियों में हमसे मिलने आते थे और साथ रहते थे। हमें उनका घर में रहना, हंसना-खिलखिलाना बहुत अच्छा लगता था। हमें पैरंट्स की तरफ फील करवाने के लिए वो काफी थे। जब वो बच्चे बहुत छोटे थे, तो मेरे पास आ गए थे। वो मेरी छाती पर लेटकर ही सोते थे। लेकिन जब बड़े हुए तो मेरे पास खेलने आते।'
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